सांकेतिक तस्वीर

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– फोटो : अमर उजाला

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प्रदेश में बिजली कर्मियों की हड़ताल की बड़ी वजह निगम में अभियंताओं के बजाय आईएएस अफसरों की तैनाती भी है। हड़ताल करने वाले कर्मचारियों का तर्क है कि चेयरमैन से प्रबंध निदेशक के पद तक आईएएस अफसर बैठा दिए जाते हैं। वे साल दो साल में बदल जाते हैं। कायदे-कानून वे बनाते-बिगाड़ते हैं। लेकिन, निगम के घाटे का खामियाजा कर्मचारियों के सिर फोड़ दिया जाता है। 

इससे बिजली कर्मियों का दोहरा शोषण हो रहा है। हड़ताल पर जाने वाले कर्मचारियों की प्रमुख मांग में ऊर्जा निगमों के चेयरमैन एवं प्रबंध निदेशकों का चयन समिति के जरिए किया जाना शामिल है। वर्ष 2015 से पहले चयन कमेटी के जरिए प्रबंध निदेशक चुने जाते थे। 

इसके लिए बिजली अभियंता और आईएएस दोनों आवेदन करते थे। लेकिन धीरे-धीरे इस व्यवस्था में बदलाव कर दिया गया। लंबे समय से सीधे शासन से प्रबंध निदेशक की तैनाती की जा रही है। वर्तमान में तो पॉवर कारपोरेशन के अध्यक्ष व प्रबंध निदेशक के साथ सभी वितरण निगमों के प्रबंध निदेशक भी आईएएस अधिकारी ही हैं।

कर्मचारियों का तर्क है कि आईएएस अफसर निगम के महत्वपूर्ण पद पर रहते हैं। वे नीति निर्धारण करते हैं। लेकिन घाटे का ठीकरा कर्मचारियों के सिर फोड़ दिया जाता है। घाटा होने पर उनकी कोई जिम्मेदारी निश्चित नहीं की जाती है। इसी तरह प्रदेश में करीब 70 हजार संविदा और 33 हजार नियमित कर्मचारी हैं। उत्पादन निरंतर होता है। अधिक उत्पादन होने का लाभ अफसर लेते हैं। उत्पादन घटने पर कर्मचारियों का बोनस काट दिया जाता है।



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