डॉप्लर रडार (फाइल)

डॉप्लर रडार (फाइल)
– फोटो : अमर उजाला

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मौसम की सटीक भविष्यवाणी के लिए यूपी में लखनऊ सहित पांच शहरों में डॉप्लर रडार, तहसील स्तर पर ऑटोमेटिक वेदर स्टेशन (एडब्ल्यूएस) व ब्लॉक स्तर पर दो-दो आटोमेटिक रेन गेज (एआरजी) की स्थापना की जाएगी। राजस्व विभाग इसके लिए मौसम विभाग नई दिल्ली के साथ समझौता (एमओयू) करेगा। मौसम विभाग उपकरणों की खरीद में राज्य को तकनीकी सहयोग देगा। मौसम विभाग ने उपकरण खरीद समिति में लखनऊ केंद्र के निदेशक को भी शामिल किया है।

शासन के एक अधिकारी ने बताया, प्रदेश के मौसम संबंधी पूर्वानुमान के लिए मौसम केंद्र लखनऊ में एस-बैंड आधारित डॉप्लर रडार है। पश्चिमी भाग का पूर्वानुमान दिल्ली के और पूर्वी हिस्से का पटना (बिहार) में स्थित डॉप्लर रडार से लगाया जाता है। प्रदेश में कुछ चुनिंदा स्थानों पर वर्षा मापी यंत्र व ऑटोमेटिक वेदर स्टेशन हैं। वर्तमान में वज्रपात की चेतावनी जिला स्तर पर ही मिल पा रही है, जबकि पूर्वानुमान अधिकतम दो-तीन किलोमीटर दायरे में समय से मिल जाना चाहिए। 

इसी तरह प्रदेश के किनारे के हिस्से वाले रडार के अंतिम परिधि क्षेत्र छाया क्षेत्र (शैडो एरिया) श्रेणी में हैं। यहां सटीक पूर्वानुमान कठिन होता है। आपदाओं में जनहानि व धनहानि रोकने के लिए सरकार ने लखनऊ, झांसी, अलीगढ़ व आजमगढ़ में एक्स बैंड व वाराणसी में एस-बैंड डॉप्लर रडार लगाने का फैसला किया है। रडार की खरीद व उसे स्थापित करने का काम मौसम विभाग करेगा। इस पर होने वाला खर्च राज्य सरकार उठाएगी।

पूरे प्रदेश के लिए 450 ऑटोमेटिक वेदर स्टेशन व 2000 ऑटोमेटिक रेनगेज लगाने पर सहमति बन गई है। ऑटोमेटिक वेदर स्टेशन शहरी क्षेत्रों में भी स्थापित होंगे। मौसम विभाग इस काम के लिए यूपी सरकार को तकनीकी सहयोग देगा, जबकि खरीद राज्य सरकार करेगी। मौसम के सटीक पूर्वानुमान का लाभ शहरी क्षेत्रों में बाढ़ व यातायात प्रबंधन में भी होगा।

हर 10-15 मिनट के अंतर पर पता कर सकेंगे स्थिति 

ऑटोमेटिक वेदर स्टेशन व ऑटोमेटिक रेनगेज की खरीद के लिए स्पेसिफिकेशन तैयार किया जा रहा है। एडब्ल्यूएस की स्थापना से तापमान, आर्द्रता, हवा के प्रवाह, दबाव, दिशा, गति व वर्षा आदि के बारे में जानकारी हो सकेगी। मैनुअल व्यवस्था में तीन-तीन घंटे पर ये सूचनाएं जुटाई जाती हैं। इससे हर 10-15 मिनट के अंतर पर स्थिति पता कर सकेंगे। एआरजी वर्षा की स्थिति, तापमान व आर्द्रता उपलब्ध कराएगी।

– मनीष रनलेकर, निदेशक मौसम विज्ञान केंद्र, लखनऊ



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